दुनिया के लिए धर्म और अधर्म का पाठ पढ़ाने और मानवता को बचने के लिए भगवान विष्णु और भगवान शिव ने महाभारत का निर्माण करवाया। जिससे की मानव को यह ज्ञात हो सके की क्या सही है क्या गलत है। महाभारत में धर्म के पक्ष में पांडव थे। तो अधर्म के पक्ष में कौरव थे। पांडवो के साथ बहुत बार कुछ गलत हुवा। कभी उनको उन्हें के देश से निकल दिया गया ,कभी उन्हें मरने की साजिश की गई लेकिन उन्होंने कभी धर्म का हाथ नहीं छोड़ा।
पांडवो ने भारत भर में कई मंदिर बनवाये है। आज हम आइए ही मंदिरो के बारे में जानेगे जिन्हे पांडु पुत्र पांडवो ने बनाया है। आज भी देश के कई सारे क्षेत्र में पांडवो द्वारा बनाये मंदिर देखने मिलते है। उनमे से कई सारे अधभुत और चमत्कारी मंदिर है। आज के इस ब्लॉग में हम पांडवों द्वारा स्थापित शीर्ष 5 प्रमुख महादेव मंदिर के बारे में बात करने वाले है।
1.श्री बिल्केश्वर महादेव मंदिर
पांडवों द्वारा स्थापित शीर्ष 5 प्रमुख महादेव मंदिरो से श्री बिल्केश्वर महादेव मंदिर 5000 वर्षो पुराणा वही एक शिव मंदिर जिसका निर्माण पांडु पुत्रो पांडवो ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर करवाया था। श्री बिल्केश्वर महादेव मंदिर का निर्माण पांडवोने अपने अज्ञात वास के अंतिम दिनों मै किया था। पांडवो ने वैसे तो पुरे भारत में अनेक मंदिरो का निर्माण करवाया है, पर श्री बिल्केश्वर महादेव मंदिर उन सब से अलग है।
महाभारत काल में इस जगह पर बेल का जंगल हुवा करता था। इस लिए पुरे क्षेत्र का नाम बिलावर और मंदिर बिल्केश्वर महादेव मंदिर के नाम इ पहचाना जाता है।
बिल्केश्वर महादेव मंदिर काफी समय से अधिक विवाद और चर्चा में चल रहा है। क्योकि इस मंदिर के बारे में अब अधिक से अधिक जानकारी सामान्य लोगो तक पहुंच चुकी है। और बिल्केश्वर महादेव मंदिर में अब भक्तो और पर्यटकों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन पिछले कुछ सालो में बिल्केश्वर महादेव मंदिर का जीणोद्धार करवा ने की सरकार ने भी थान ली थी और उसके लिए काम शुरू भी हो गए था, लेकिन किसी कारण वश यह कार्य पूर्ण नहीं हो पाया।
बिल्केश्वर महादेव मंदिर सड़क मार्ग
बिल्केश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए आपको कठुाआ आना होगा। बिल्केश्वर महादेव मंदिर कठुआ में ही स्थित है। कठुआ शहर बड़े शहरों अच्छे से जोड़ा हुवा है। आप पहले पठान कोठ या जम्मू भी आ सकते हो। वहा से आपको कठुआ के लिए परिवहन मिल जाएगी।
बिल्केश्वर महादेव मंदिर रेलवे मार्ग
बिल्केश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए आपको कठुाआ रेल्वे स्टेशन आना पड़ेगा। कठुआ शहर बड़े रेल्वे स्टेशन जोड़ा हुवा है। फिर भी अगर आपको मिलती तो आप पहले पठान कोठ या जम्मू भी आ सकते हो। वहा से आपको कठुआ के लिए परिवहन मिल जाएगी।
बिल्केश्वर महादेव मंदिर हवाई मार्ग
बिल्केश्वर महादेव मंदिर के लिए सब नजदीकी हवाई अड्डा जम्मू है तो 110 किलो मीटर की दूरी पर है। जो की यहाँ से आपको टेक्सी या ऑटो मिल जायेगा।
2.अंबरनाथ महादेव मंदिर
पांडवों द्वारा स्थापित शीर्ष 5 प्रमुख महादेव मंदिरो से अंबरनाथ महादेव मंदिर एक स्थापिक मंदिर है। अंबरनाथ महादेव मंदिर महाराष्ट्र राज्य के मुंबई के पास अंबरनाथ शहर में स्थित एक पौराणिक मंदिर है। अंबरनाथ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। अंबरनाथ महादेव मंदिर इस लिए भी विशेष हे,क्योकि ऐसा माना जाता है की इसका निर्माण स्वयं पांडवोने किया है। अंबरनाथ शहर में स्थित होने के कारण इस मंदिर का एक नाम अंबरेश्वर महादेव भी है।
अंबरनाथ महादेव मंदिर अपने अद्रुतिय शिल्प कला, अद्भुत नैसर्गिक वातावरण के वजह से बहुत अधिक प्रख्यात है। अंबरनाथ महादेव मंदिर में शिवलिंग के सामने 1 नहीं बल्कि 2 नंदी है। अंबरनाथ महादेव मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको 3 मुख्य मंडपम देखने मिलते है। अंबरनाथ महादेव मंदिर मंदिर में एक गरम पानी का कुंड है। जो की अंबरनाथ महादेव मंदिर को और भी रहस्यमय बना देता है। माना जाता है अंबरनाथ महादेव मंदिर को पांडवो ने सिर्फ एक रात में ही बनाया था।
अंबरनाथ महादेव मंदिर सड़क मार्ग
अंबरनाथ महादेव मंदिर की सड़कें देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं। इसलिए आप देश के किसी भी हिस्से से अपने वाहन या किसी सार्वजनिक बस या टैक्सी द्वारा इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। आप अंबरनाथ महादेव मंदिर तक महाराष्ट्र परिवहन की सहायता से भी आ सकते है।
अंबरनाथ महादेव मंदिर रेलवे मार्ग
अंबरनाथ महादेव मंदिर निकटतम रेलवे स्टेशन अंबरनाथ रेलवे स्टेशन है। जोअंबरनाथ महादेव मंदिर से सिर्फ 2 किमी की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या ऑटो का उपयोग करके इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
अंबरनाथ महादेव मंदिर हवाई मार्ग
अंबरनाथ महादेव मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा मुंबई हवाई अड्डा है। जो अंबरनाथ महावेद मंदिर से 50 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या ऑटो का उपयोग करके आप इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
3.निष्कलंक महादेव मंदिर
निष्कलंक महादेव मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो अधिकतम समय जलमग्न रहता है और यहाँ आने वाले भक्तो को दर्शन देने के लिए महादेव जलस्तर नीचे करदेते है। निष्कलंक महादेव मंदिर अरब समुद्र के किनारे है। और मान्यता है की यह शिव लिंग स्वयंभू है।
पांडवों द्वारा स्थापित शीर्ष 5 प्रमुख महादेव मंदिरो से निष्कलंक महादेव मंदिर एक और स्थापिक मंदिर है। पुराणों और कथाओ की माने तो निष्कलंक महादेव मंदिर को पांडवोने बनाया था। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। निष्कलंक महादेव मंदिर में 5 शिव लिंग है जो की 5 पांडवो ने भगवान श्री कृष्णा के कहने पर करवाया था। निष्कलंक महादेव मंदिर 5 शिवलिंगो के सामने 5 नंदी जी विराजे हुए है।
पांडव ने आपने की कुल का विनाश किया था और अपने भाई और संबंदी ओ की जान ली थी। इस लिए उसके कलंक दूर करने के लिए भगवान कृष्ण शुद्धी करन के लिए पांडवो को भेजते है। इस जगह पर पांडवो को अपने पाप से मुक्ति मिली थी। इस लिए इस मंदिर का नाम निष्कलंक महादेव मंदिर रखा गया है।
निष्कलंक महादेव मंदिर सड़क मार्ग
सड़क मार्ग से भावनगर गुजरात के लगभग सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। गुजरात राज्य परिवहन की बस सेवा का उपयोग करके आसानी से भावनगर पहुँचा सकते हैं, जहाँ से निष्कलंक महादेव मंदिर पहुँचना भी आसान ही है।
निष्कलंक महादेव मंदिर रेलवे मार्ग
भावनगर रेलवे में स्थित भावनगर टर्मिनस इस महादेव मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो वड़ोदरा, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, दिल्ली जैसे लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।
निष्कलंक महादेव मंदिर हवाई मार्ग
निष्कलंक महादेव मंदिर का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा भावनगर है। यहाँ से मुंबई और अहमदाबाद के लिए हवाई जहाज उपलब्ध रहती है। जिसकी दूरी यहाँ से लगभग 180 किमी है।
4. गंगेश्वर महादेव मंदिर
पांच ऐसे शिवलिंग जो रहते है हमेशा जलमग्न। जिनका निर्माण पांच पांडवो ने अपने अज्ञात वास के समय किया था। हम बात कर रहे है , गंगेश्वर महादेव मंदिर की। शांत और प्राकृतिक वातावरण से घिरा समंदर किनारे बना अति प्राचीन मंदिर है। दुनिया भर में भगवान शिव के आने मंदिर है , लेकिन यह मंदिर बहुत शक्तिशाली ऊर्जा है।
गंगेश्वर मंदिर का इतिहास
गंगेश्वर महादेव मंदिर महाभारत कल का अर्थात 5000 साल से भी ज़्यादा पुराना है। एक गुफा में समुद्र के किनारे चट्टानों के पास स्थित है। मंदिर में अलग-अलग आकार के पाँच शिवलिंग हैं, जो पांडवो अपने अज्ञातवास के दौरान बनवाया था। यहाँ शिवलिंग लगातार अरब सागर की लहरे जलाभिषेक करते है।
अन्य भगवान
गंगेश्वर मंदिर में अन्य भगवान की मुर्तिया भी मौजूत है जैसे की भगवान गणेश, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी। वहाँ कोई पुजारी नहीं था और आप जो कुछ भी भगवान को अर्पित करते हैं वह कुछ ही सेकंड में समुद्र में बह जाता है।
गंगेश्वर महादेव मंदिर का समय
गंगेश्वर महादेव मंदिर सुबह 6:00 बजे खुलता है और शाम को 9:00 बजे बंद हो जाता है।
गंगेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग से–
गंगेश्वर महादेव मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा दीव हवाई अड्डा है जो इस मंदिर से लगभग 6 किमी की दूरी पर है। यहाँ से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग–
गंगेश्वर महादेव मंदिर दीव से निकटतम रेलवे स्टेशन देलवाड़ा रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से 12.9 किमी की दूरी पर है। यहाँ से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग से–
इस मंदिर की सड़कें देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं, इसलिए आप देश के किसी भी हिस्से से अपने वाहन या किसी भी सार्वजनिक बस या टैक्सी द्वारा आसानी से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
5. कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर
देवभूमि हिमाचल में स्थित कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जिसे मिनी हरिद्वार के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर जिला कांगड़ा के रक्कड़ उपमंडल में स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है। मान्यता है कि यह मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था, जब वे वनवास के दौरान यहां लंबे समय तक रहे थे।
मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में एक जनश्रुति है कि यह प्रतिवर्ष एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता चला जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब यह शिवलिंग पूरी तरह से धरती में समा जाएगा, तो कलियुग का अंत हो जाएगा।
यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है और हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है। यहां पर विभिन्न त्योहारों और उत्सवों के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और मंदिर की ओर से विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों को यहां की प्राकृतिक सुंदरता और शांति का अनुभव होता है, साथ ही साथ वे यहां की धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को भी महसूस कर सकते हैं।
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण और रोचक है। मान्यता है कि सतयुग में शिवालिक पहाड़ियों में जालंधर दैत्य का आतंक था, जिससे परेशान देवता, ऋषि-मुनियों ने अपनी शक्तियों से महाकाली को जन्म दिया। उन्होंने कुछ ही क्षणों में जालंधर और अन्य दैत्यों का नाश कर दिया।
दुष्टों के संहार के बाद भी जब काली का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव खुद युद्ध भूमि पर लेट गए और क्रोधित माता का पैर उनके ऊपर पड़ गया। मां काली को जैसे ही अहसास हुआ तो वह एकदम शांत हो गईं। लेकिन उन्हें बार-बार इस गलती का अफसोस होता रहा। प्रायश्चित के लिए वर्षों तक हिमालय पर विचरती रहीं।
एक दिन वह कालेश्वर में ब्यास नदी के किनारे बैठकर भगवान शिव का ध्यान करने लगीं। भोलेनाथ ने उस समय उन्हें दर्शन दिए और उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। तब से इस स्थान को काली और शिव यानी कि कालीनाथ कालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।
यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है और हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है। यहां पर विभिन्न त्योहारों और उत्सवों के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और मंदिर की ओर से विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचें ?
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर के स्थान और यात्रा के बारे में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण और रोचक है। यह मंदिर ज्वालाजी से 12 किलोमीटर दूर है और चंडीगढ़-नादौन राजमार्ग पर कूहना से संपर्क मार्ग पर जाना होगा, जहां से इसकी दूरी तीन किलोमीटर है। चिंतपूर्णी की ओर से आने वाले लोगों को नैहरनपुखर से मुड़ना पड़ता है, जहां मंदिर की दूरी करीब 12 किलोमीटर है। देहरा से सुनेहत होते हुए यह स्थान छह किलोमीटर दूर है।
यहां के लिए बस सहित टैक्सी सुविधा भी उपलब्ध है, जो यात्रियों के लिए सुविधाजनक है। मंदिर तक पहुंचने के लिए विभिन्न मार्ग हैं, जो यात्रियों की सुविधा के लिए हैं।
कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है और यहां पर विभिन्न त्योहारों और उत्सवों के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।