माँ मुंडेश्वरी मंदिर: प्राचीन वास्तुकला की अद्भुत धरोहर

भारत की धरती पर 1700 साल पुराना एक ऐसा मंदिर है, जहाँ आज भी होते है कई अद्भुत चमत्कार। बलि हो जाते है फिर से जीवित। क्या आप जानते है इस इस रहस्यमई मंदिर के बारे मै।

माँ मुंडेश्वरी मंदिर

माँ मुंडेश्वरी मंदिर 1700 साल पुराणा एक ऐसा शिव जी और पार्वती जी का मंदिर है। जो आज भी बिहार और भारत की जान कहा जाता है। मुंडेश्वरी मंदिर बिहार की सबसे प्राचीन धरोहर में से एक है। जहाँ जिवंत बलि की प्रथा है। मुंडेश्वरी मंदिर में हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। मुंडेश्वरी मंदिर में आने वाला हर भक्त और पर्यटक बस इसकी अनोखी कला कृति में खो जाता है।

मुंडेश्वरी मंदिर कई सौ सालो तक गुमनामी के अंधेरो में रहा। लेकिन एक दिन इस अंधेरी रात का भी सूरज ऊगा। जब कुछ ब्रिटिश लोग इस मंदिर की तरफ रास्ता भूल कर आ गए थे , और फिर उन्होंने जो देखा उस पर खुद उन ब्रिटिशर को भी यकीन नहीं आ रहा था। क्योकि उन्होंने आपने सामने कई सौ साल पुराना भारतीय कलाकृति का अद्धभुत नमुना देखा था।

मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन

इस महान ब्रिटिश लोको का नाम था,आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन और ब्लॉक इन ब्रिटिश यात्रिओ 1812 और 1904 के बीच इस मंदिर का दौरा किया था। माँ मुंडेश्वरी मंदिर की खोज में इनका बहुत बड़ा और महत्व पूर्ण योगदान है।

यहाँ  स्थित है।

Kaimur Hill

माँ मुंडेश्वरी मंदिर बिहार राज्य के कैमूर जिल्हे के भगवानपुर नाम के गांव में पड़ता है। मुंडेश्वरी मंदिर पिवारा पहाड़ी के शिखर के 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मुंडेश्वरी मंदिर पर बना शिलालेख 389 ईस्वी के मध्य का है, ये दीवारे और शिल्पकला बया करती है यहाँ का इतिहास।

मंदिर की  वास्तुकला

मुंडेश्वरी मंदिर का नजारा काफी खूबसूरत

मुंडेश्वरी मंदिर का नजारा काफी खूबसूरत है। मुंडेश्वरी मंदिर के पहले चार प्रवेश द्वार थे लेकिन बाद में तीन प्रवेश द्वार को किसी वजह से  बंद कर दिया गया था। मुंडेश्वरी मंदिर परिसर के आसपास पुरातन विभाग ने कई बार जांच के नाम पर खुदाई  भी की है। मुंडेश्वरी  मंदिर में भगवान शंकर के पंचमुखी रूप का  शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग बहुत ही अद्भूत और अद्रुतिय  है।

खासियत क्या है?

बिहार की संस्कृति

मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के सबसे खूबसूरत,भव्य ,और प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो पूरे भारत में अपनी विशाल वास्तुकला और प्राचीन इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा करने के अलावा, आप बिहार की संस्कृति ,और खान पान  का भी लुत्फ उठा सकते हैं। यह शहर अपनी हस्तशिल्प कलाओं के लिए भी जाना जाता है। हालांकि, बिहार में और भी कई विशाल मंदिर और शिल्प वास्तुकला के लिए जाना जाता है। लेकिन यहां मौजूद सभी मंदिरों में मुंडेश्वरी मंदिर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यह व्यापक रूप से अपनी खूबसूरत पत्थर की वास्तुकला के लिए जाना जाता है।

मंदिर के दर्शन करने का सही समय

मंदिर के दर्शन करने का सही समय

माँ मुंडेश्वरी मंदिर के दर्शन आप 365 दिनो में कभी भी कर सकते हैं। लेकिन दर्शन करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के बीच है क्योंकि इस दौरान यहाँ का मौसम बहुत अच्छा होता है।माँ मुंडेश्वरी मंदिर के द्वार प्रातकाल 6:00 भक्तो के लिए खुल जाते है। और फिर माँ की बहुत प्यारी सी आरती होती है।
भक्त आरती के बाद माँ के दर्शन लेतेऔर प्रसाद गृहण करते है। संद्या के समय 7 बजे यहाँ शयन आरति होती है। फिर मंदिर के कपाट सुबह काट के लिए बंद कर दिए जाते है।

मुंडेश्वरी मंदिर के चमत्कार

मुंडेश्वरी मंदिर के चमत्कार

माँ मुंडेश्वरी मंदिर में एक भव्य पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है। यह पंचमुखी शिवलिंग चमत्कारी और अद्धभुत है, क्योकि इस पंचमुखी शिवलिंग के रंग सूर्य की दिशा और दशा के अनुसार बदलता रहता है। इस रंग परिवर्तन को आप अपनी आखोसे भी देख सकते हो पर इसका कारन आज तक विज्ञानं भी नहीं दंड पाया। इस रहस्य का पता लगाने के लिए यहाँ अनेक प्रयत्न किये गए। मुंडेश्वरी मंदिर के पश्चिम द्वार पर एक विराट पूर्व मुखी नंदी महाराज की प्रतिमा है। यह मूर्ति बहुत अधिक भव्य और विशाल है।

जिवंत बलि की प्रथा

जिवंत बलि की प्रथा

माँ मुंडेश्वरी मंदिर में भी बकरे की बलि दी जाती है। लेकिन आश्चर्य की बात यह हे की,जिवंत बलि की प्रथा यहाँ प्रचलित है। मुंडेश्वरी मंदिर दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर हे ,जहाँ  जिवंत बलि की प्रथा है। मुंडेश्वरी मंदिर में बकरे की  बलि एक पारंपरिक तरीके से दी जाती है। जब भी भक्त माँ मुंडेश्वरी मंदिर मे आते है और उनकी मन की कोई भी मुराद, इच्छा ले कर आते है ,और वह इच्छा माँ मुंडेश्वरी  पूर्ण कर देती है। फिर भक्त अपनी इच्छा से एक बकरे की जीवित बलि देते है। सबसे पहले वही एक बकरा ख़रीदा जाता है। फिर उस बकरे को ले कर मुंडेश्वरी मंदिर तक ले कर जाना होता है, और आपको सातमे कुछ पूजा का  सामान भी ले कर जाना होता है।  

इसमें  बकरे को माँ के चरणों में अर्पित किया जाता है, बकरे को माँ मुंडेश्वरी के मूर्ति  के सामने सुलाया जाता है और पंडित जी कुछ मन्त्र उचार करते है ,और कुछ चावल के दाने अभी मंत्रित  करते है । फिर बकरा अचानक मुरछित हो जाता है। कुछ देर तक बकरा ऐसे पड़ा रहता है , जैसे की उसके अंदर जान ही न हो,फिर पंडित जी कुछ मन्त्र उचार करते है और बकरा फिर से जीवित हो जाता है। बकरे के जिन्दा होते ही  बलि की प्रथा पूर्ण हो जाती है। यह प्रथा सचमे बहुत अधिक अलग है।

कैसे पहुंचें मुंडेश्वरी मंदिर?

मुंडेश्वरी मंदिर तकआप सारे मार्ग से पोहच सकते है।

सड़कमार्ग

आप यहाँ सड़क मार्ग से बड़ी आसानी से आ सकते है। यहाँ बिहार परिवहन की बहुत अच्छी सुविधा उपलब्ध है। भारत भर से पटना शहर अच्छे से जुड़ा हुवा है। पटना से मुंडेश्वरी मंदिर 209 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। वाराणसी से मुंडेश्वरी मंदिर दूरी दूरी मात्र 90 किलोमीटर है। पटना और वाराणसी दोनों शहर भारत के प्रख्यात शहर है और यहाँ आप बहुत आसानी से आ जा सकते हो। मुंडेश्वरी मंदिर ऊंचाई पर स्थित है लईकिन आप फिर ही अधिकतम रास्ता वाहन से भी जा सकते है।

हवाईमार्ग

मुंडेश्वरी मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा वाराणसी हवाई अड्डा है,जो की मंदिर से महज 60 किलोमीटर दूर है। और आप यहाँ से मुंडेश्वरी मंदिर तक बिहार परिवहन,जीप,ऑटो,अन्य वाहन द्वारा जा सकते हो।

रेल्वेमार्ग

मुंडेश्वरी मंदिर का नजदीकी रेल्वे स्टेशन भभुआ रोड (मोहनियाँ) रेल्वे स्टेशन है। और ये रेल्वे स्टेशन वाराणसी, पटना जैसे बड़े शहर से भी जुड़ा है। आप चाहो तो सिधा वाराणसी या पटना भी आ सके हे या फिर वहा से आप आगे सड़क मार्ग से या रेल्वे मार्ग से भी यहाँ पोहच सकते हो।
एक तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिए 524 फीट तक सड़क मार्ग की सुविधा है जहाँ हल्की गाड़ियाँ जा सकती है I राजधानी पटना से प्रतिदिन कई वातानुकूलित एवं सामान्य गाड़ियाँ भभुआ के लिए एक तरफ मंदिर तक पहुँचने के लिए 524 फीट तक सड़क मार्ग की सुविधा है जहाँ हल्की गाड़ियाँ जा सकती है I राजधानी पटना से प्रतिदिन कई वातानुकूलित एवं सामान्य गाड़ियाँ भभुआ के लिए प्रस्थान करती है I वाराणसी तथा पटना से रेल द्वारा आने के लिए गया मुगलसराय रेलखंड पर स्थित भभुआ रोड (मोहनियाँ) स्टेशन उतरना होता है

मुंडेश्वरी मंदिर का विध्वंस

मुंडेश्वरी मंदिर का विध्वंस

भारत में मुगलो के शाषन ने सबसे क्रूर शाषक औरंगजेब को माना जाता है, क्योकि औरंगजेब हमेशा कुछ ऐसे ही काम करता था जो जनता को परेशान करते थे। औरंगजेब ने बिहार के कैमूर में स्थित माता मुंडेश्वरी के मंदिर को भी तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन माँ के चमत्कार के चलते मूल मंदिर को तोड़ने में वह नाकाम रहा है। औरंगजेब को जब मुंडेश्वरी माता मंदिर के बारे में जानकारी मिली तो उसने इस मंदिर को भी ध्वस्त करने का फरमान जारी कर दिया। मुगल सैनिक पहाड़ की चोटी पर पहुँच कर मंदिरों का विध्वंस करने लगे। कहा जाता है कि जब मुगल सैनिक मुख्य मंदिर को तोड़ने लगे, लेकिन इसके पूर्ण विध्वंस से पहले ही उनके साथ अनहोनी होने लगी। इसके बाद इस मंदिर को अर्द्ध खंडित अवस्था में ही छोड़ दिया गया है। वहाँ खंडित मूर्तियों एवं विग्रहों के रूप में आज भी मौजूद हैं।

माँ मुंडेश्वरी मंदिर का विश्व का सबसे पुराना कार्यरत मंदिरो में से एक कहा जाता है, जिसकी वास्तुकला से लेकर इसके रहस्य तक अचंभित और आश्चर्य चकित  करने वाले हैं। इसके निर्माण से लेकर विध्वंस तक के बारे में कहानियाँ प्रचलित हैं।

मुख्य त्यौहार

मुख्य त्यौहार

वैसे तो भारत में सारे त्यौहार मनाये जाते है। लेकिन कुछ त्यौहार कुछ जगह पर अधिक महत्त्व पूर्ण है। जैसे की माँ मुंडेश्वरी मंदिर के पास शारदीय नवरात्र में मां की पूजा व दर्शन का काफी महत्व है। और उस 10 दिनों मै आपको इतने भक्तो की भीड़ देखने मिलेगी की पैर भी न रख पाओ। आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। सचमे माँ मुंडेश्वरी यहाँ अपने भक्तो की साडी मनोकामना पूर्ण करती है।

माघ पंचमी से पूर्णिमा तक इस पहाड़ी पर एक मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से भक्त आते हैं। और माना जाता है की यहाँ आने वाले सारे भक्तो की मनोकामना माँ बहुत जल्दी ही पूर्ण करती है। भक्तो यहाँ दर्शन के लिए कभी कभी कई घंटे तक क़तर में लगे रहते है। क्योकि सबर और परिश्रम का फल हमेशा बहुत लाभदाई और मीठा होता है।

मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण

मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण

माँ मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण शक शासनकाल में हुआ था। इसकी साक्षी हे ये ब्राम्ही लिपि में संदेश लिखित शिलालेख जो मुंडेश्वरी मंदिर के परिसर में स्थित है। मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण 108 ईस्‍वीं में किया गया था। शक शासन में ही ब्राह्मी लिपि का उपयोग किया जाता था। उसके आधार पर यह कहा जाता है कि यह ‘शक’ शासन काल का मंदिर है।

माँ मुंडेश्वरी मंदिर की 100 बेहद दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा के दृश्टिकोण से यहाँ से हटाकर कोलकाता और पटना के बड़े संग्रहालय में भेजा गया है। ये मंदिर सुरक्षा के कारन से बहुतं महत्त्व पूर्ण है।

भारत में स्थित शक्तिपीठ

आपने शक्तिपीठों की सूची दी है। मैं इसे दो तालिकाओं में विभाजित कर सकता हूं। पहली तालिका भारत में स्थित शक्तिपीठों के लिए होगी और दूसरी तालिका बांग्लादेश और अन्य देशों में स्थित शक्तिपीठों के लिए होगी।

स्थानराज्य
महामाया, अमरनाथजम्मू और कश्मीर
अट्टाहासा में फुलारापश्चिम बंगाल
बाहुला, बर्धमानपश्चिम बंगाल
महिषमर्दिनी, बक्रेश्वरपश्चिम बंगाल
अवंति, बैरावपर्वत उज्जैनमध्य प्रदेश
गंडकी चंडीचंडी नदी
भामरीजनस्थन
ज्वाला या शक्ति सिद्धिदाकांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
कालिका, कालीघाटपश्चिम बंगाल
कालीमाधव, अमरकंटकमध्य प्रदेश
खमाकियागुवाहाटी, असम
देवघर / कंकलेश्वरीबीरभूम, पश्चिम बंगाल
श्रावणीकन्याकुमारी, तमिलनाडु
चामुंडेश्वरी / जया दुर्गाचामुंडी हिल्स, मैसूर
विमलामुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल
कुमार शक्तिआनंदमयी मंदिर, पश्चिम बंगाल
शक्ति भ्रामरीरत्नावली, पश्चिम बंगाल
शक्ति दक्षिणायनीमानसरोवर
गायत्री मणिबन्धपुष्कर, राजस्थान
उमामिथिला, नेपाल और भारत की सीमा
वराहीपंच सागर, उत्तर प्रदेश
चंद्रभागाजूनागढ़, गुजरात
ललिताप्रयाग
सावित्री / भद्र कालीकुरुक्षेत्र, हरियाणा
शिवानीमैहर, सतना, मध्य प्रदेश
नंदिनी या नंदिकेश्वरीबीरभूम, पश्चिम बंगाल
सर्वशिल / राकिनीगोदावरी नदी तट, कोटिंगेश्वर मंदिर
नर्मदा शोणदेशअमरकंटक, मध्य प्रदेश
देवी नारायणीसुचिंद्रम, तमिलनाडु
त्रिपुरा सुंदरीउदयपुर, त्रिपुरा
मंगल चंडिकाउज्जैन
विशालाक्षीवाराणसी, उत्तर प्रदेश
कपालिनीविभाष, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
अंबिकाभरतपुर, राजस्थान
उमावृंदावन / भूतेश्वर मंदिर, उत्तर प्रदेश
त्रिपुरमालिनीजालंधर, पंजाब
अंबाजीअम्बा, गुजरात
जय दुर्गादेवगढ़, झारखंड
दंतेश्वरीछत्तीसगढ़
बिराजनबी गया, जयपुर
सप्तश्रृंगीमहाराष्ट्र
भारत में स्थित शक्तिपीठ

बांग्लादेश और अन्य देशों में स्थित शक्तिपीठ

स्थानदेश
अपर्णा, भवानीपुरबांग्लादेश
कोट्टारी, हिंगलाजकराची, पाकिस्तान
जयंती, बोरबाग गांवबांग्लादेश
योगेश्वरी, खुलना जिलाबांग्लादेश
महाशिरा, गुह्येश्वरीपशुपतिनाथ मंदिर के पास, नेपाल
भवानी, चंद्रनाथ हिल्सबांग्लादेश
महिष मर्दिनीशिवहरकारे, कराची, पाकिस्तान
सुंदरीश्री सैलम (वर्तमान में बांग्लादेश)
महा लक्ष्मीश्री शैल (वर्तमान में बांग्लादेश)
सुगंधशिकारपुर (वर्तमान में बांग्लादेश)
इन्द्राक्षनैनातिवु, मणिपल्लवम्, श्रीलंका
बांग्लादेश और अन्य देशों में स्थित शक्तिपीठ

  

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