तारापीठ मंदिर जो तांत्रिको का गड कहा जाता है

भारत का तारापीठ मंदिर तंत्रविद्या और माँ आदिशक्ती की शक्ति का प्रमुख केंद्र है। यहाँ आदिशक्ति की तारा माँ की पूजा की जाती है, जो माँ सती के नयन के तारे के रूप में पूजी जाती है। तारापीठ मंदिर में अनेक संतों, साधुओं, और तांत्रिकों ने साधना की है और विद्या प्राप्त की है। इस मंदिर के पास दुनिया की एक मात्र उलटी बहाने वाली नदी भी स्थित है।

1.तारापीठ मंदिर की संपूर्ण  जानकारी

तारापीठ मंदिर

भारत में मां आदिशक्ति के 51 शक्तिपीठ हैं, जिनमें से 5 पश्चिम बंगाल के बीरभूमि जिल्हे में स्थित हैं। ये 5 शक्तिपीठ हैं – तारापीठ, बक्रेश्वर, नलहाटी, बंदिकेश्वरी और फुलोरा। इनमें से तारापीठ सबसे प्रसिद्ध है, जिसका कारण इसकी अनोखी रहस्यमयी परम्पराएं और कथाएं हैं। यह मंदिर अपनी तांत्रिक गतिविधियों और रोचक कथाओं के लिए जाना जाता है।

2.तारापीठ मंदिर का इतिहास

तारापीठ मंदिर का इतिहास

तारापीठ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और इसका संबंध देवी सती की आंखों की पुतली से है। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक सिद्ध पुरुष की कथा भी जुड़ी हुई है, जिन्हें मां तारा जी ने शमशान में दर्शन दिए थे और अनेक सिद्धियां प्रदान की थीं। तारापीठ मंदिर में भगवान रामचन्द्र जी के कुलपुरोहित वशिष्ट मुनि जी का सिद्धासन भी है, साथ ही स्वामी विवेकानन्द जी के गुरुजी स्वामी रामकृष्ण परम हंस जी को भी यहाँ ध्यान की प्राप्ति हुई थी।

3.तारापीठ क्यों प्रसिद्ध है ?

तारापीठ क्यों प्रसिद्ध है

तारापीठ मंदिर अपने चमत्कार और तांत्रिक क्रियाओं के लिए जगप्रसिद्ध है। यहाँ साक्षात् माँ काली तारा देवी विराजमान हैं, जो अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। तारापीठ मंदिर एक आस्था और शांति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, साथ ही तांत्रिक और अघोरियों के लिए यह एक तांत्रिक विद्यापीठ है। यहाँ एक शमशान है, जहां तांत्रिक और अघोरी अपनी तप साधना करते हैं। तारापीठ मंदिर कौशिकी अमावस्या के अवसर पर विशेष रूप से मनाया जाता है, जब मां आदि शक्ति ने माता तारा देवी के परम भक्त बामाखेपा को दर्शन दिए और सिद्धि प्रदान की थी। यहाँ द्वारका नदी का चमत्कारिक दृश्य भी देखा जा सकता है।

4.मां तारा देवी कौन है?

मां तारा देवी कौन है

5.माता सती की कथा:-

        प्रजापति दक्ष चाहते थे कि उनके घर एक ऐसी पुत्री का जन्म हो जो गुणवान, शक्तिशाली और सर्वविजयी हो। प्रजापति दक्ष ऐसी पुत्री के लिए तप करने लगे। तब देवी आद्या प्रकट हुईं और बोलीं, ‘मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। मैं स्वयं पुत्री बनकर तुम्हारे यहां जन्म लूंगी। मैं सती के रूप में जन्म लेकर अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगी । जब सती विवाह उचित हुआ, तो प्रजापति दक्ष को उनके लिए वर की चिंता हुई। उन्होंने ब्रह्मा जी से सलाह ली। प्रजापति दक्ष ने ब्रह्मा जी की इच्छा से सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया। सती कैलास में भगवान शिव के साथ निवास स्थान चले गए। एक बार ब्रह्मा ने धर्म निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया था। सभी बड़े बड़े देवता सभा में एक साथ थे। भगवान शिव भी एक ओर विराजमान थे। सभा मंडल में प्रजापति दक्ष का आगमन हुआ। प्रजापति दक्ष के आगमन पर सभी देवता हाथ जोड़कर खड़े हो गये, पर भगवान शिव नहीं खड़े  हुए। प्रजापति दक्ष ने अपमान का अनुभव किया। उनके मन में भगवान शिव के प्रति तृष्णा की आग जल उठी। वे अपना बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगें। एक बार सती और शिव कैलाश पर्वत पर बैठे थे। उसी समय आकाश मार्ग से कई विमान पूजास्थान की ओर जाते हुए दिखाई दिए। सती ने भगवान शिव की एक झलक दिखाते हुए उनसे पूछा, ‘प्रभो, ये सभी विमान अवशेष हैं और कहां जा रहे हैं?’ भगवान शंकर ने उत्तर दिया, ‘तुम्हारे पिता ने यज्ञ की रचना की है। देवता और देवांगनाएं इन विमान में शामिल होकर उसी यज्ञ में शामिल होने के लिए जा रहे हैं।’ सती ने दूसरा प्रश्न किया, ‘क्या मेरे पिता ने तुम्हें यज्ञ में शामिल होने के लिए नहीं बुलाया?’ भगवान शंकर ने उत्तर दिया, ‘आपके पिता मेरे बैर हैं, फिर वे मुझे क्यों बुलाएंगे? सती मन ही मन मान लियाई, फिर बोलीं, ‘यज्ञ के अवसर पर निश्चित रूप से मेरी बहनें। उनसे मिले बहुत दिन हो गए।

भगवान शिव ने उत्तर दिया, ‘इस समय वहां जाना नहीं होगा। आपके पिता मुझसे जलते हैं, हो सकता है वे आपका भी अपमान करें। ‘बिना बुलाए किसी के घर जाना नहीं होता’ भगवान शिव ने उत्तर दिया, ‘हाँ, विद्या लड़की को बिना पिता के घर नहीं बुलाना चाहिए, क्योंकि विवाह हो जाने पर लड़की अपने पति से हो जाती है। पिता के घर से उनका रिश्ता टूट जाता है।’ अन्या सती पीहर जाने के लिए हाथ ले आओ। उनकी इच्छा देखकर भगवान शिव ने पीहर जाने की सलाह दे दी। उन्होंने अपने साथ अपना एक गण भी कर दिया, उस गण का नाम वीरभद्र था। सती वीरभद्र के साथ अपने पिता के घर चले गए, किसी ने भी प्रेम का विरोध नहीं किया। प्रजापति दक्ष ने उन्हें देखकर कहा, ‘तुम यहां मेरा अपमान क्यों कर रहे हो? अपनी बहनों को तो देखो, वे किस प्रकार के भाई बहनों के अलंकार और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित हैं। नकली शरीर पर बड़ा बाघंबर है। यहूदी पतित श्मशानवासी और भूतों का नायक है। वह हथियार बाघंबर और कपड़े ही खरीद सकती है। प्रजापति दक्ष के कथन से सती के दिल में डूबा सागर का तारा। वे टॉकलॉग, ‘यूके यहाँ ज्ञान अच्छा नहीं है। भगवान ठीक ही कह रहे थे, बिना बुलाए पिता के घर भी नहीं जाना चाहिए। अब क्या हो सकता है? अब तो आ ही गया हूं’ पिता के कटु और चावला शब्द भी सती मौनी ने सुने। वे उस यज्ञमंडल में गए जहां सभी देवता और ऋष मुनि बैठे थे और यज्ञकुंड में धूधू जलती हुई अग्नि में आहुतियां डालती जा रही थी   सती ने यज्ञमंडप में सभी देवताओं के तो भाग देखे, साक्षात भगवान शिव का भाग नहीं देखा। वे भगवान शिव का भाग न देखकर अपने पिता से बोलें, ‘पितृश्रेष्ठ ‘ यज्ञ में तो सबका भाग प्रकट हो रहे हैं, वैज्ञानिक कैलाशपति का भाग नहीं है। आपने उनका हिस्सा क्यों नहीं दिया?’ प्रजापति दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया, ‘मैफे पति कैलास को देवता नहीं माना। वह तो भूतों का स्वामी, नग्न रहने वाला और पत्थरों की माला धारण करने वाला है। वह देवताओं की पंक्ति में उपयुक्त नहीं हैं। उसे कौन भाग देगा। सती के उत्सव लाल हो उठो। उनके नन्हा कुटिल हो गए। उनका मुखमण्डल प्रलय के सूर्य की सम्मिलित तेजोद्दीप्त हो उठा। उन्होंने पीड़ा से तिलमिलाते हुए कहा,’ओह मैं इन शब्दों को कैसे सुनता हूं, मुझे याद है। देवताओ, भगवान भी धिक्कार है तुम भी उन कैलाशपति के लिए इन शब्दों को कैसे सुन रहे हो, जो मंगल के प्रतीक हैं और जो एक क्षण में संपूर्ण सृष्टि को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं।

वे मेरे स्वामी हैं। नारी के लिए उसका पति स्वर्ग ही है। जो नारी अपने पति के लिए चटनी शब्द सुनती है, वह नरक में रहती है। पृथ्वी सुनो, आकाश सुनो और देवताओं, तुम भी सुनो मेरे पिता ने मेरे स्वामी का अपमान किया है। मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहता।’ सती अपने कथन को समाप्त करती हुई यज्ञ के कुण्ड में कूदती है। जलती हुई आहुतियों के साथ उनका शरीर भी जल गया। यज्ञमंडप में पैदा हुआ लड़का, हाहाकार मच गया।

वीरभद्र क्रोध से काम्प उते। वे उछ्लउछलकर यज्ञ का विध्वंस करने लगे। यज्ञमंडप में भगदड़ मच गई। देवता और ऋषिमुनि भाग गए। वीरभद्र ने देखते ही देखते प्रजापति दक्ष का मस्तक दृश्य दे दिया। समाचार भगवान शिव के नाम से भी जाना जाता है। वे प्रचंड तूफान के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं।

सती के जले शरीर को देखकर भगवान शिव ने आपको भूला दिया। सती के प्रेम और उनकी भक्ति ने शंकर के मन को व्याकुल कर दिया। उन शंकर के मन को व्याकुल कर दिया, काम पर भी विजय प्राप्त की थी और जो सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखते थे। वे सती के प्रेम में खो गए, बेसुध हो गए।

भगवान शिव ने उन्मत की दूसरे सती के जले शरीर को कंधे पर रख लिया। वे सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगते हैं। शिव और सती के इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी रुक गई, हवा रुक गई, जल बह गया और देवताओं की धरती पर रुक गया। सृष्टि व्याकुल हो उठी, सृष्टि के जीव पुकारने लगे संकटकालीन भयावह प्राणी दर्शन सृष्टि के पालक भगवान विष्णु आगे बढ़े।

वे भगवान शिव की बेसुधी में अपने चक्र से सती के एकएक अंग को काटकाट कर गिराने लगे। धरती पर इक्यावन स्थल पर सती के अंग कट कटकर मूर्तियां। जब सती के सारे अंग कट कर गिर गए, तो भगवान शिव अपने आप में पुनः स्थापित हो जाएं। जब वे आप में आएं, तो पुनः सृष्टि के सारे कार्य शुरू करें।

जिन भी जगह पर माता सती के अंग भाग गिरे उन साडी जगह पर एक एक शक्तिपीठ उत्पन हुए। आज उन सारी जगह पर आज भव्य मंदिरो का निर्माण हो चूका हे और लोग उन्हें बहुत पूजते। तारापीठ मंदिर भी उन शक्तिपीठो मे से एक है।

6.तारापीठ कैसे जाये?


तारापीठ कैसे जाये

 

तारापीठ रेल और सड़क मार्ग से पूरी तरह से यात्रा हुई है। अगर आप तारापीठ मंदिर फ्लाइट से आना चाहते हैं तो आप कोलकाता तक आ सकते हैं कि यहां का सबसे बड़ा शहर है।अगर आपको सीधे तारापीठ के लिए कोई सदन नहीं मिल रहा है तो आप अपने शहर से कोलकाता आएं और फिर आप यहां, तारापीठ के लिए आसान हो जाएं।सियालदह या हावड़ा स्टेशन से आपको तारापीठ स्टेशन के लिए ट्रेन मिलेगी। स्टेशन के बाहर आपको ई-रिक्शा मिलेगा जो आपको 50 रुपए में मंदिर के पास छोड़ देगा।

7.तारापीठ मंदिर क्या देखने जैसा है?

वैसे तो तारापीठ मंदिर के परिसर में ऐसी जगह है, जो चमत्कारी और रहस्य से भारी है।

शमशान

तारापीठ मंदिर क्या देखने जैसा है

तारापीठ मंदिर एक ऐसा शमशान है जो अपनी तंत्र विद्या के लिए संपूर्ण जगत ने प्रसिद्ध है। यहाँ हमेशा तांत्रिक, अघोरी, नागा साधु और भी सिद्ध पुरुष देखते हैं। जो तारापीठ मंदिर अपनी साधनाओ में लिन होते हैं। तारापीठ मंदिर कामो के लिए विद्यापीठ माना जाता है, कहा जाता है कि, तारापीठ मंदिर से विद्या प्राप्त करने वाले हमेशा बहुत महान उच्चे महान पुरुष बने हैं।

द्वारका नदी

द्वारका नदि

संपूर्ण भारत में सारी नदिया उत्तर से दक्षिण की तरफ बहती है। द्वारका एक मात्र ऐसी नदी है जो दक्षिण से उत्तर की ओर बेहती है।

जीवन कुंड

जीवन कुंड एक तालाब है जो तारापीठ मंदिर परिसर में स्थित है। यहाँ ऐसी मान्यता है कि जीवन कुंड में स्नान करने के बाद आपको मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। तारापीठ के जीवन कुंड में स्नान करने के बाद बुरा इंसान पवित्र हो जाता है।

तंत्र विद्या का जागृत स्थान

तारापीठ तंत्र विद्या के लिए सबसे जागृत और उपयुक्त स्थान मन जाता है।

तारापीठ मंदिर के उबदार आपको सारे तंत्र, काला जादू, जैसी क्रिया समान्य है।तारापीठ माई आपको हर तरह के साधु, संत, योगी, महायोगी, संन्यासी, अघोरी, नागासादु, तांत्रिक, और भी विभिन्न प्रकार के लोग देखेंगे।

8.रहने और खाने पीने की व्यवस्था?

रहने और खाने पीने की व्यवस्था

तारापीठ तंत्र विद्या के लिए सबसे जागृत और उपयुक्त स्थान मन जाता है।

तारापीठ मंदिर के उबदार आपको सारे तंत्र, काला जादू, जैसी क्रिया समान्य है।तारापीठ माई आपको हर तरह के साधु, संत, योगी, महायोगी, संन्यासी, अघोरी, नागासादु, तांत्रिक, और भी विभिन्न प्रकार के लोग देखेंगे।

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