ज्वाला देवी मंदिर अनंत:आस्था की ज्योति

ज्वाला देवी मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहाँ कई सदियों से जल रही हे 9 रहस्यमई दिव्य ज्योत। ज्वाला देवी मंदिर माँ सती के 51 शक्ति पीठो में से एक महत्त्व पूर्ण शक्ति पीठ है। ज्वाला देवी मंदिर में माँ आदिशक्ति की ज्योति के रूप में पूजा की जाती है।

कहाँ है ज्वाला देवी मंदिर ?

कालीधर पहाड़ी

ज्वाला देवी मंदिर भारत के उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के कालीधर पहाड़ी पर स्थित है। कालीधर पहाड़ी कांगड़ा जिले की हद में आती है। ज्वाला देवी मंदिर 51 शक्ति पीठो मे से एक पूजनीय स्थान है। ज्वाला देवी मंदिर भरी संख्या में श्रद्धालु हमेशा आते है। ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के मुख्य 5 शक्ती पीठो मे से एक है। बीते कुछ वर्षो में ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के प्रमुख पर्यटक बन चूका है।

किसको पूजते हे यहाँ ?

ज्वाला देवी मंदिर माँ आदिशक्ति को समर्पित है। माँ यहाँ दिव्य ज्योत के रूप में विराजमान है। जब माँ सती अग्नि में खुद को जला लेते है। तब उन्हें शिव जी अपने कंधे पर लेकर तीनो लोको में घूमते है। धरती के का कल्याण के लिए जब भगवन श्री हरी विष्णु ने आपने सुदर्शन चक्र से माँ सती के शरीर को बात दिया। तो माँ सती की जीभ का भाग यहाँ गिर गया था। ज्वाला देवी मंदिर ५१ शक्ति पीठो मे से एक पूजनीय स्थान है।

प्राकृतिक दिव्य ज्योत की विषेशता

प्राकृतिक दिव्य ज्योत की विषेशता

ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश की वादियों में बसा एक बहुत सुन्दर पर्यटक स्थल है। ज्वाला देवी मंदिर में सदियों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं। अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी, महाकाली माँ के दिव्या ज्योत स्वरुप में पूजा की जाती है।

ज्वाला देवी  मंदिर निर्माण

महाराजा रणजीत सिंह

ज्वाला देवी  मंदिर निर्माण सबसे पहले राजा श्री भूमि चंद जी  द्वारा किया  गया था। कई सालो बाद भारत के प्रसिद्ध शाशक राजा संसारचंद और महाराजा रणजीत सिंह भी 1835 में इस मंदिर का जीणोद्धार पूरा किया था। भारत के और भी कई राजा महाराजाओ का नाम इस मंदिर के सात जुड़ा हुवा है। जैसे के मुग़ल शाशक अकबर का भी नाम इस मंदिर के सात जुडा हुवा है।

विज्ञान और आस्था 

विज्ञान और आस्था 

ज्वाला देवी मंदिर अपने रहस्य के लिए बहुत विख्यात है। ज्वाला देवी मंदिर में कई युगो से 9 प्राकृतिक दिव्य ज्वालाएं जल रही हैं। इन रहस्य की पड़ताल करने के लिए कई सारे वैज्ञानिक यहाँ आते रहते है। और अपनी जांच करते है। कई बार इन दिव्य ज्योतो के सामने और आस पास बहुत बड़ी खुदाई की कई हे ,की कहि से पता चल सके की ये ज्योत इतने वक्त से जल कैसे रही है। कई बार इस ज्योत को बुझाने के किये बहुत सारे प्रयास किये गए। पर कभी सफलता नहीं मिली। ये आज भी विज्ञानं के लिए एक चुनौती पाना है की यह ज्योत हमेशा जलती कैसे है। सामान्य आग में अगर पानी डाल्दो तो वो बुझ जाती है। पर वही इस ज्योत पर पानी डालो तो

ज्वाला देवी माँ की कथाएँ (ध्यानु भक्ति की कथा)

ज्वाला देवी माँ की कथाएँ 

ध्यानु भक्ति नाम का माँ ज्वाला देवी का एक भक्त था। जो हर साल हजारो यात्रिओ के समूह के सात ज्वाला देवी तक की पद यात्रा करता था। उस समय दिल्ही हे अकबर का शाषन था। अकबर के सैनिकोंने इस काफिले की खबर अकबर तक पोहचा दी। इस के बाद अकबर ने उन सब को दरबार में हाजिर करने का हुकुम दिया। अकबर के हुकुम पर यात्री दरबार में हाजरी लगाने आये। अकबर ने कई सरे सवाल किये। अकबर ने ध्यानु भक्त को भी पूछा ” की कोण हे तुम्हारी माँ,? क्या सचमे तुम्हारी ज्वाला माँ इतनी शक्तिशाली है ?”

ध्यानु भक्त ने माँ के चमत्कारों की गाथा अकबर को सुनाई तो अकबर गुस्से में आ गया। अकबर ने गुस्से में एक घोड़े का सर काट दिया। और फिर ध्यानु भक्त को बोलै की अपनी माँ से कहना की इस घोड़े का सर फिर से जोड़ दे और इसे जीवित करदे ” अकबर ने कहा “अगर तुम्हारी माँ इस घोड़े टी फिरसे जीवित कर देगी तो में मानलुंगा की में गलत हु और तुम्हारी माँ सचमे शक्तिशाली है और आपने भक्तो की सुनती है “
ध्यानु भक्त फिरसे यात्रा के लिए निकल पड़ा। अब ध्यानु माँ के चरणों में पढ़कर सारी बाते बताने लगा। लेकिन माँ का कोई उत्तर नहीं आया। गुस्से में ध्यानु भक्त ने आपने सर कट लिया , और ज्वाला माँ को अर्पित कर दिया।
ज्वाला देवी ध्यानु की भक्ति से प्रसन्न हो कर उसे आशीर्वाद दिया। ध्यानु भक्त ने बताया की कैसे अकबर सबको परेशान कर रहा है और कैसे उसने एक एक मासूम और बेजुबान जानवर को मर डाला।
ज्वाला देवीने ध्यानु का सर फिरसे जोड़ दिया और उसे जीवीत कर दिया। वैसे ही माँ ज्वाला देवीने दिल्ही में मरे हुए घोड़े का सर फिरसे जोड़ दिया और अकबर की आखे खोल दी। अक़बर माँ के इस चमत्कार से महत प्रभावित हो गया।

अकबर भी हुवा था नतमस्तक

अकबर भी हुवा था नतमस्तक

मुग़ल बादशाह अकबर को किसीने ज्वाला देवी मंदिर के चमत्कार के बारे में बताया तब अकबर ने बीरबल से पूछा की सचमे ये एक चमत्कार ही है। मुग़ल बादशाह अकबर को भरोसा नहीं हुवा। अकबर ने खुद पड़ताल करने की सोची ,और आपने सैनिक भेजे जो उस ज्वाला को बुझा सके। पर ऐसा नहि हो पाया। अकबर के सैनिक नाकाम हो गए। फिर अकबर खूद यहां आया था। और उसने यहाँ जगह जगह खुदाई करवाई और आदेश दिया की अचे से जांच करो कीआग के स्तोत को ढूंढो पर काफी मेहनत के बाद भी अकबर के सैनिको को सफकता नहीं मिली। और अकबर ने भी महसूस किया की यहाँ सचमे कुछ तो चमत्कार है ज्वाला देवी का।

ज्वाला देवी के चमत्कार को देखकर अकबर भी नतमस्तक हो गया। अकबर अपनी गलती पर शर्मिंदा था और उसने माँ के लिए एक सोने का छत्र बनवाया। वह छत्र लेकर अकबर ने चढ़ाया तो माँ ने उसे स्वीकार नहीं किया। माँ के प्रकोप से वह सोने का छत्र किसी अन्य धातु में बदल गया। आश्चर्य की बात यह हे की यह कौन सा है धातु इसका आजतक किसी को पता नहीं चला।उसका कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि ज्योत जलती रहती है। आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।

ज्वाला देवी की कथा (गोरखनाथ जी महाराज)

संत श्री गोरखनाथ महाराज ज्वाला देवी दर्शन

ज्वाला देवी मंदिर की ज्वाला से जुडी एक पौराणिक कथा भी बहुत प्रचलित है। कथा के अनुसार,संत श्री गोरखनाथ महाराज मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त हुवा करते थे और हमेशा माँ की भक्ति में डूबे रहते थे। एकबार भूख लगने पर संत श्री गोरखनाथ महाराज नित्य नियम से भिक्षा मांगने जा रहे थे। संत श्री गोरखनाथ महाराज मां से कहने लगे कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं भिक्षा मांगकर आता हूं। जब संत श्री गोरखनाथ महाराज भिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। ऐसा मन जाता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने संत श्री गोरखनाथ महाराज के लिए जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती दिखाई देती है। इस पवित्र कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। कथा के अनुसार कलयुग के अंत में संत श्री गोरखनाथ महाराज मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी। यह कथा कही न कही भक्त और भगवान के बिच अटूट प्रेम को दर्शाती है।

उन्मत भैरव

उन्मत भैरव

जहाँ शक्ति हे वहा शिव है। इसलिए जहाँ जहाँ माँ आदिशक्ति के शक्ति पीठ है ,वहाँ शिव भैरव के रुप में माँ की रक्षा करते है। ज्वाला देवी मंदिर में माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं तो भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। शक्ति बिना शिव अधूरे है और शिव बिना शक्ति। इसलिए उन्मत भैरव यहाँ आने वाले हर भक्त की रक्षा करते है। और यहाँ आने वाले सारे भक्तो के दुःख भी हर लेते है।

ज्वाला देवी मंदिर तक कैसे पोहचे? हवाई मार्ग:

आप यहाँ हवाई मार्ग से भी आ सकते है। ज्वाला देवी मंदिर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल है जो की ज्वाला देवी मंदिर से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर है।
और आप यहाँ से हिमाचल प्रदेश के परिवहन बस से भी आ सकता है। ज्वाला देवी मंदिर तक पोहचे के लिए और भी हवाई अड्डे है जैसे की चंडीगढ़ हवाई अड्डा लगभग 200 किलोमीटर दूर है। शिमला हवाई अड्डा लगभग 160 किलोमीटर दूर है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू हवाई अड्डे से दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में लगभग 480 किलोमीटर दूर है।

रेल्वे मार्ग

ज्वाला देवी मंदिर तक आप रेल्वे मार्ग से भी आसानीसे पोहोच सकते हो। ज्वाला देवी मंदिर का सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशनं ज्वाला जी रोड रानीताल है। जो की ज्वाला देवी मंदिर से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। और रेल्वे स्टेशन हे जहा से आप ज्वाला देवी मंदिर तक आ सकते हो जैसे की पठानकोट रेल्वे स्टेशनं। पठानकोट रेल्वे स्टेशनं ज्वाला देवी मंदिर सिर्फ 120 किलोमीटर की दूरी पर है। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन 200 किलोमीटर की दूरी पर है।

सड़क मार्ग

ज्वाला देवी मंदिर में आप तो भारत के कई सारे छोटे बड़े शहर से आपको जैंसे की पठानकोट,अमृतसर, दिल्ही ,चंडीगढ़ , जम्मू-कश्मीर, श्रीनगर, और धर्मशाला से मोटर वाहन द्वारा जोड़ा जाता है। सभी छोटे बड़े शहरों से लगातार राज्य परिवहन बस सेवा उपलब्ध है जो आपको ज्वाला देवी मंदिर तक पोहचा देगी । यहाँ का मार्ग और नज़ारे आँखो को सुकून देने वाले है। यह पूरा क्षेत्र पहाड़ी है। इस लिए यहाँ आपको रस्ते में सुन्दर सुन्दर वादिया खूबसूरत झरने,ऊंचे ऊँचे पहाड़ ,नदिया और भी कई सारे नज़ारे आपकी आखो क ठंडक बढ़ाएंगे। यहाँ आपको परिवहन की उत्तम सुविधा मिलती है। यहाँ आपको राज्य परिवहन बस सेवा उपलब्ध है। इसके आलावा भी अगर आप यहाँ से प्राइवेट बस या अन्य वयक्तिगत वहां से भी इस का आनंद उठा सकते हो।

यहाँ आपको राज्य परिवहन बस सेवा उपलब्ध है। इसके आलावा भी अगर आप यहाँ से प्राइवेट बस या अन्य वयक्तिगत वहां से भी इस का आनंद उठा सकते हो।


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