1.Shitala Mata Temple का परिचय
Shitala Mata Temple हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंदिरो में से एक है।शीतला माता मंदिर 51 शक्तिपीठो में से एक महा शक्ति शाली और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।शीतला माता मंदिर भारत की सबसे पवित्र नदी माता गंगा के किनारे स्थित है।शीतला माता मंदिर की इतनी मान्यता है की यहाँ आने से भक्तो की सारी परेशानी और बीमारी दूर हो जाती है।शीतला मंदिर के अर्थ भक्तो ने कुछ ऐसा बताया है। यहाँ शीतला अपनी शक्ति से हर बीमारी को नष्ट कर देती है, हर बुरी शक्ति को तो हरा देती है,और अपने शीतल स्वरुप से सबके जीवन में शांति और शीतलता प्रदान करती है।यहाँ आने से हर तरह की ला इलाज बीमारी,रोग,मानसिक तनाव,संक्रमण बीमारिया,निःसंतानता, महामारी सब बीमारियों को यहाँ माँ शीतला देवी जो की माँ दुर्गा आदिशक्ति अपनी शक्तिओ से हर लेती है।
2.Shitala Mata Temple कहाँ है?
Shitala Mata Temple माँ गंगा नदी के किनारे कड़ा नामके गांव में स्थापित है। शीतला माता मंदिर उतर प्रदेश के कौशम्बी जिल्हे में पड़ता है, जो की प्रयागराज (इलाहबाद ) से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ आने बहुत ही सरल है। Shitala Mata Temple तक आप किसी भी परिवहन सेवा के जरिये आ सकते हो। यहाँ हमेशा भक्तो की भीड़ लगी रहती है। शीतला माता मंदिर एक जागृत तीर्थ स्थल है, जहा लोग हमेशा अपनी कोई न कोई इच्छा लेकर एते है। और माँ भक्तो की उस इच्छा को पूरा भी करती है। Shitala Mata Temple का यह मंदिर कड़ा गांव में होने की वजह से इस कड़ा धाम के नाम से भी पहचाना जाता है।
3.शीतला माता की कथा
बाबा महादेव और माता सती की कथा तो हमने आपको पिछले ब्लॉग में बता चुके है। यह कथा भी उसी कथा से जूड़ी हुई है। प्रजापती दक्ष एक यज्ञ का आयोजन करते है, उस यज्ञ में महादेव को आमंत्रित नहीं किया, इसी बात से माता सती को क्रोध आया और वह उसी यज्ञ की आग अपना शरीर दाह कर लिया। या बात जब महादेव को बता चली तो महादेव माता सती के मृत देह को ले कर बभ्रमण करने लगे। इस बात से चिंतित हो कर भगवन विष्णु आपने सुदर्शन चक्र निकला और माता सती (Shitala Mata) के शरीर को टुकड़ो में विभाजित कर दिया। तब जाकर महादेव होश में आये। जिन जगह पर यह शरीर अंग टुकड़े के हो कर गिरे है।आज उस जगह पर शक्तिपीठ स्थपित हो चुके है। और लोग बड़े भाव से उनकी पूजा आराधना करते है। ऐसे कुल 51 शक्तिपीठ है समस्त जगत में,जिसमें से एक Shitala Mata Temple भी एक शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती के शरीर का दाहिना हाथ पंजा गिरा था।
4.पांडवो से संबंध
इस मंदिर की एक कहानी ये भी बताई जाती है की,द्वापर युग में पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल और सहदेव अपने वनवास समय में शीतला माता मंदिर दर्शन के लिए आए। यहां उन्होंने गंगा के किनारे औरअच्छा Shitala Mata Temple बनवाया और महाकालेश्वर शिवलिंग की स्थापना की जो की वर्तमान में मां शीतला देवी का मंदिर भव्य स्वरूप ले चुका है।
5.शीतला अष्टमी और शारदीय नवरात्र
बहुत समय पहले की बात है। त्रिशूल नाम का एक हुवा राक्षस करता था। जो जहरीली श्वास छोड़ता था। जिस किसी पर भी उसकी जहरीली श्वास पढ़ती थी उसके पूरे शरीर में फफोले पड़ जाते थे। जिससे कारकोटक वन के आसपास के गांवों की जनता बहुत परेशान थी। इस संक्रामक बीमारी का किसी वैद्य के पास इलाज नहीं मिल पा रहा था। तब भक्तों ने शारदीय नवरात्र में आदिशक्ति दुर्गा के शीतल स्वरूप का सामूहिक आवाहन किया। जिसके बाद शक्ति के इस स्वरुप को शीतला मां के रूप में जाना जाने लगा। इतना ही नहीं शीतला अष्टमी के पर्व को यहा संक्रामक रोग नियंत्रण पर्व के रूप में मनाते है। उन दिनोमे मंदिर में बहुत अधिक श्रद्धालु माँ शीतला देवी के दर्शन हेतु आते है। मान्यता है की इन दिनों माँ अधिक शक्ति शाली होती है। इसलिए यहाँ आने वाले सारे श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करदेती है।
6.विश्वास और मान्यता
Shitala Mata Temple के आस पास के इलाके में स्थित गांवों मे आज भी छोटी चेचक व बड़ी चेचक की बीमारी को नाम से नहीं बल्कि, छोटी माता या बड़ी माता कहा जाता है। यहां मां शीतला पर के लोगों की इतनी आस्था है,कि लोग छोटी चेचक व बड़ी चेचक से प्रभावित रोगी के ऊपर जलहरी का जल डालते है। तो रोगी सच मे ठीक हो जाता है। यहां के लोगों का विश्वास है की,जो श्रद्धालु भक्ति भावना से मां के दरबार में माथा टेकता है। उसे वह सबकुछ मिलता है जो वह पाना चाहता है ।
7.Shitala Mata प्रसन्नता का प्रतीक है जलहरी का भरना
Shitala Mata Temple में हर वर्ष दोनों नवरात्रियों के अवसर में यहां बडा मेला का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु सुख, शान्ति एवं मनोकामना पूर्ण होने के लिए मां शीतला देवी के चरणो के समीप स्थित जलहरी कुण्ड को भरते है। चमत्कारिक बात यह है कि यदि कोई श्रद्धालु अहंकार के साथ दूध या गंगाजल से कुण्ड को भरना चाहे तो जलहरी नहीं भर सकता। इस चमत्कारी जलहरी भर जाना देवी के प्रसन्न्ता का प्रतीक माना जाता है।
8.शीतलाष्टमी के नियम
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी Shitala Mata की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है। इस पूजा का नियम बहुत ज्यादा अलग होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार कर लिया जाता है।
9.पूजन के दिन घर में नहीं जलता चूल्हा
Shitala Mata की पूजा के दिन इस सम्पूर्ण क्षेत्र में किसी घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। Shitala Mata की उपासना अधिकाशत: वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है।
10.गधे की लीद के लेपन से ठीक हो जाता है चेचक का दाग
प्राचीन काल से ही शीतला माता का बहुत अधिक महत्त्व रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन तथा नीम के पले धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं।
नीम के पले फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गधा यानी गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। यहां हर साल गधों का मेला भी लगता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
11.शीतलाष्टक स्तोत्र मंत्र
Shitala Mata को प्रसन्न करने के लिए भक्त शीतलाष्टक स्तोत्र मंत्र पाठ है। शीतलाष्टकम स्तोत्र मंत्र बहुत ही शक्तिशाली है। शीतलाष्टक स्तोत्र मंत्र की रचना स्वयं महादेव ने की थी। शीतलाष्टक स्तोत्र मंत्र शीतलाष्टमी को माता की सामने पथ करके माता को बासी भोजन करने से हर भक्त की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
12.शीतला माता का स्वरुप
हमारे वैद पुराणों में सब का जवाब मिल जाता है,स्कंद पुराण में वर्णित है की, Shitala Mata अनेक रोगो कि स्वामिनी है। जिसमे मुख्य रुबसे चेचक का नाम लिया जाता है। शीतला माता मंदिर के माँ का स्वरुप बहुत अधिक अलग है। शीतला माँ के इस स्वरुप प्रतिमा के हातो में कलश,सुप,झाडू और नीम के पत्ते धारण किये हुए है। शीतला माता की सवारी गर्दभ है। शीतला माता गर्दभ पर अभय मुद्रा में सवार है। शीतला माता के संग ज्वरासुर जो ज्वर के दैत्य है,हैजा की देवी,चौसट रोग,घेतुकर्ण त्वचा रोग के देवता और रक्तवाती देवी भी विराजमान है। इनके कलश में दाल है। इनके कलश में दाल के दाने के रूप में विष्णु और शीतल स्वास्थवर्धक और रोगाणु नाशक जल होता है।
13.कौन थी शीतला माता ?
पुराण और कथाओ की मने तो ऐसा बताया जाता है की, माता शीतला की उत्पति भगवन ब्रम्हा से हुई थी। Shitala Mata माँ सती का ही अंश थी। माता सती को महादेव की पत्नी के रूपमे पूजते है। जब शीतला माता को स्वर्ग से धरती पर आना था तो उनके सात उनके साथी के रूप में शिव जी के पसीने से प्रकट हुए ज्वरासुर को भी आना पड़ा।
14.कैसे प्रसन्न होती हे शीतला माता ?
माता शीतला को राजा विराट के राज्य में जाना था, पर राजा विराट ने Shitala Mata को राज्य में स्थान नहीं दिया। इस बात से शीतला माता क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपनी शक्ति राजा को दिखाई। शीतला माता का क्रोध इतना ज्यादा था की,सारी प्रजा के शरीर पर लाल लाल दाने निकलने लगे और सब गर्मी से मरने लगे। राजा विराट को कुछ समाज नहीं आ रहा था की क्या करे। राजा विराट शीतला माता के पास गए और माता को शांत करने के लिए राजा विराट ने आपने हाथ से शीतला माता को ठंडी दूध और लस्सी अर्पित कीया। और Shitala Mata की प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति करने लगे। राजा विराट की ये भावना देख कर शीतला माता उनसे प्रसन्न हो गई और उनके सारे राज्य को फिर से खुशहाल बना दिया। तब से आज तक हर भक्त माता को इस तरह का भोग लगते है। ताकि शीतला माता उनसे भी प्रसन्न रहे और उन्हें भी खुशहाल और स्वस्थ रखे।